Office Work: इबीएम के एम्प्लॉई सुब्रमण्यम डी का टी ब्रेक अब रुचिकर हो गया है। वह ऑफिस बिल्डिंग के पास स्थित छोटे गार्डन में जाते हैं। वहां वह पालक और टमाटर उगा रहे हैं। उसी ब्लॉक में 70 अलग-अलग गार्डन प्लॉट्स हैं। लंबे आवर्स और टी ब्रेक्स के दौरान आइबीएम एम्प्लॉइज अपने प्लॉट्स के आस-पास नजर आते हैं। वहां वे पौधों को पानी देते हैं, उनकी देखभाल करते हैं। यह सब बंगलुरु के एम्बेसी मान्यता बिजनेस पार्क में हो रहा है। इस एक एकड़ के टेक पार्क में ऐसे 700 से ज्यादा प्लॉट्स हैं। इस मुहिम में अब तक 2000 लोग जुड़ चुके हैं। उन्होंने अपना नाम गार्डनिंग प्लॉंट्स के लिए रजिस्टर करवाया है। इसके लिए कोई फीस नहीं है। इन्हें ‘पहले आओ, पहले पाओ’ के आधार पर अलॉट किया जाता है।

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गार्डनिंग के हैं कई फायदे
पश्चिमी जगत में कॉर्पोरेट बैक्ड एम्प्लॉई गार्डन मशहूर हैं। गूगल, याहू और पेप्सिको जैसी कंपनियां अपने एम्प्लॉइज को गार्डनिंग के लिए प्रोत्साहित करती हैं। कंपनियों का मानना है कि इससे उनकी प्रोडक्टिविटी बढ़ती है और मूड अच्छा बना रहता है। शोध बताते हैं कि गार्डनिंग करने से तनाव कम होता है और खाने-पीने की अच्छी आदतें विकसित होती हैं।

ऑर्गेनिक फॉर्म का इस्तेमाल
देश की कई कंपनियां वर्कप्लेस गार्डनिंग को अपना चुकी हैं। उनमें से ही एक है- सासकेन टेक्नोलॉजीज। अपनी ऑफिस बिल्डिंग के पास कंपनी का 1.5 एकड़ का ऑर्गेनिक फार्म है। कंपनी ने इस खाली पड़ी जमीन को हरा-भरा बनाने की योजना के तहत वर्कप्लेस गार्डनिंग का कॉन्सेप्ट अपनाया है। यहां पर टमाटर, पालक, मैथी, मक्का आदि उगाए जाते हैं। कई कंपनियां इनडोर प्लान्ट्स को भी प्रमोट कर रही हैं।

मदद के लिए रहती है टीम
पुणे में एम्बेसी टेकजोन में भी वर्कप्लेस गार्डनिंग को अपनाया गया है। एम्प्लॉइज को बीज उपलब्ध करवाए जाते हैं। गार्डनिंग प्लॉट्स की देखभाल के लिए हॉर्टीकल्चर टीम मदद करती है। प्लॉट्स के पास वर्मी कम्पोस्ट पिट्स के प्वॉइंट्स हैं, जहां सूखी पत्तियां और घास को डाल दिया जाता है।

डेस्क प्लान्ट का महत्व
कोलकाता में इंडियन ऑटिज्म सेंटर में माहौल को हरा-भरा बनाने के लिए वर्कप्लेस पर ही चारों ओर 500 पौधे लगाए गए हैं। जब भी कोई कर्मचारी संस्थान को ज्वॉइन करता है, तो उसे एक डेस्क प्लान्ट दिया जाता है। हर एम्प्लॉई प्लान्ट को पानी देता है और सूखी पत्तियां साफ करता है।



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